रविवार, 5 अक्तूबर 2014

महादेवी हास्य कविता डाॅ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘नन्द

          


तुम चाहे जो भी मानो, भला भी मुझे ना जानो,
मै तो  तेरे   प्यार  का  दिवाना मस्ताना हूॅ।
तुम  हो  अद्र्धांग मेरी , मै  हूॅ  पूर्णांग  तेरा,
दिल में  तुम घुस जाओ तेरा मै ठिकाना हूॅ।।
तुझसेबिपाशा’  जैसी  आशा है लगायी मैने,
तुझको को तो  देखो  मैऐशहूॅ समझता।
दिल के  लिए भी तो हो दिलदार साथी तुम,
तुझको करोड़ों  की हूॅ  ’कैशहूॅ समझता।।
मल्लिकासी रंग तेरी, सुन लो प्राणेश मेरी,
तेरे संग  फेरे  लेके  हुआ  मै तो धन्य हूॅ।
शादी के तो पहले मै, बड़ा ही मूरख था ही,
शादी के  तो  बाद मै   भी  बना मूर्धन्य हूॅ।।
धन्य  धन्य  सासु और ससुर मेरे साले सब,
जिसने  तुम्हारी  मेरे संग  में   सगाई की।
सुनता था  फाटक  के  आड़ से मैं छिपकर ,
तेरे  बाप  भाई  ने जो  घर में बड़ाई की।।
सात  सात सालियों  की बहना हमारी बीबी,
तुझको तो  प्यार   की मै  ट्रेक हूॅ समझता।
तुम जो  कहे है  मेरी देवी   महादेवी सुन,
अपने  को  हरपल   क्रैक  मै समझता।।
लाल लाल गाल  जो थे हुए हैं छुहारे अस,
अब और  प्यार मंे  भी  फॅस नही सकता।
शादी के तो  पहले मै हॅस लिया इतना हूॅ,
कि आज थोड़ा खुलकर हॅस नही सकता।।
किसकी  मजाल है जो तेरा ना सम्मान करे,
देखो  तेरा भाई  जो  मिसाइल  बनाता है।
इसीलिए  तेरे संग   जाता  नही ससुराल,
चाहे  वह  कितना  ही  मुझको बुलाता है।।
बुरा मत  मानो  देवी  सच सच कहता हूॅ,
तुम  तोरबीना’  औरकरीनासे महान हो।
रहती  हो  मेरे संग बीबी भी हमारी ही हो,
पर  तुम हर  पल टी0 वी0 पे कुरबान हो।।

बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

"शादी से पहले की सोच" (डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द')

शादी से पहले की सोच
 
कोकिला की बोली होय, रंग नही कोकिला की,
हस्तिनी की चाल होय, मोटी नही हाथी हो।
सबको वो सम देखे एक आँख दुनिया को,
पर दोनो आँखों वाली प्यारी मेरी साथी हो।
पतली कमर होय, टीवी की मरीज नही,
नैन में हो चितवन, दृष्टि फिर जाते हो।
कदली समान पैर, प्यारी के निराले होय,
देखने को बार बार नैन लौट आते हो।
रात की अंधेर में चमक चाँदनी की होय,
लागे वह मेरी प्यारी शुक्लाभिसारिका।
हॅंसती हो फूल झड़े, लम्बे लम्बे बालों वाली,
नायिका बेकार सब लागे वह सारिका।
सास व ससुर होय दिल से रंगीले सब,
छोटी-मोटी प्यारी-प्यारी दो चार साली हो।
सन्तरे सम गाल वाला, साला भी निराला होय,
उसकी बहन प्यारी, मेरी घर वाली हो।

शनिवार, 27 सितंबर 2014

"माँ" (डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द')

माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।
तुम ही मेरी पूजा अर्चन, तुम ललाट की रोली हो।।
माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।।

तुमने धरती सम धारणकर, मुझको हरदम ही है पाला,
भूख सही है हरदम तुमने, पर मुझको है दिया नेवाला,
नही कदम जब मेरे चलते, ऊंली पकड़ संग हो ली हो।।
माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।।

धीरे-धीरे स्नेह से तेरे, मैने चलना थोड़ा सीखा,
पर आहट जब मिली कहीं कि, लाल हमारा थोड़ा चीखा,
दौड़ पड़ी नंगे पद हे माँ, करूण स्वरों में तुम बोली हो।।
माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।।

बिना तुम्हारे सारा जीवन, ता माते है यह रीता,
जब तक है आशीष तुम्हारा, तब तक मै हूँ जग को जीता,
तुम तो हो ममता की मूरत, सुखद स्नेह की झोली हो।।
माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।।

र तुम्हारे ऊपर अपना, सारा जीवन अर्पित कर दूॅ,
नही मिटेगा कर्ज तुम्हारा, चाहे सभी समर्पित कर दूॅ,
भले कुपुत्र हुआ मै बालक, कभी नही तुम डोली हो।।
माँ तुम कितनी भोली हो, माँ तुम कितनी भोली हो।।

बुधवार, 24 सितंबर 2014

"हिन्दी महिमा" (डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द')

          
हिन्दी मे गुण बहुत है, सम्यक देती अर्थ।
भाव प्रवण अति शुद्ध यह, संस्कृति सहित समर्थ।।1।।
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वैयाकरणिक रूप में, जानी गयी है सिद्ध।
जिसका व्यापक कोश है, है सर्वज्ञ प्रसिद्ध।।2।।
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निज भाषा के ज्ञान से, भाव भरे मन मोद।
एका लाये राष्ट्र में, दे बहु मन आमोद।।3।।
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बिन हिन्दी के ज्ञान से, लगें लोग अल्पज्ञ।
भाव व्यक्त नहि कर सकें, लगे नही मर्मज्ञ।।4।।
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शाखा हिन्दी की महत्, व्यापक रूचिर महान।
हिन्दी भाषा जन दिखें, सबका सबल सुजान।।5।।
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हिन्दी संस्कृति रक्षिणी, जिसमे बहु विज्ञान।
जन-जन गण मन की बनी, सदियों से है प्राण।।6।।
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हिन्दी के प्रति राखिये, सदा ही मन में मोह।
त्यागे परभाषा सभी, मन से करें विछोह।।7।।
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निज भाषा निज धर्म पर, अर्पित मन का सार।
हर जन भाषा का करे, सम्यक सबल प्रसार।।8।।
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देश प्रेम अनुरक्ति का, हिन्दी सबल आधार।
हिन्दी तन मन में बसे, आओ करें प्रचार।।9।।
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हिन्दी हिन्दी सब जपैं, हिन्दी मय आकाश।
हिन्दी ही नाशक तिमिर, करती दिव्य प्रकाश।।10।।
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हिन्दी ने हमको दिया, स्वतन्त्रता का दान।
हिन्दी साधक बन गये, अद्भुत दिव्य प्रकाश।।11।।
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नही मिटा सकता कोई, हिन्दी का साम्राज्य।
सुखी समृद्धिरत रहें, हिन्दी भाषी राज्य।।12।।
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हिन्दी में ही सब करें, नित प्रति अपने कर्म।
हिन्दी हिन्दुस्थान हित, जानेंगे यह मर्म।।13।।
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ज्ञान भले लें और भी, पर हिन्दी हो मूल।
हिन्दी से ही मिटेगी, दुविधाओं का शूल।।14।।
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हिन्दी में ही लिखी है, सुखद शुभद बहु नीति।
सत्य सिद्ध संकल्प की, होती है परतीति।।15।।
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आकाशवाणी अल्मोड़ा (4.9.10), 
चनाकार, शबनम साहित्य परिषद् (20.10.10)