रविवार, 10 जून 2012


परिवर्तन
है अनुभव अब अन्त हुये, जग की परिभाषायें बदली।
वह किरण आस की लुप्त हुयी, जीवन की आशायें बदली।
परिवर्तन के इस रौद्र रूप में, क्या क्या परिवर्तित होगा।
यह जान सोच मन थक जाये, लोगों की अभिलाषायें बदली।।
उपकार जगत से दूर हुआ, बदले हर जन निज कर्मों से।
आहत मन करना काम रहा, पदच्युत नित होते धर्मों से।
हे युग के संचालक मालिक, मधुरिम सुखद हटायें बदली।।
भाषण में कोई कसर नही, पर कर्म नही हो पाता है।
कन्या की हत्या जली बधू को, न्याय नही मिल पाता है।
पश्चिमी हवायें है हावी, पूरब की दिव्य हवायें बदली।।
कहना कुछ है, करना है कुछ, इनसान यहाॅ पर करता है।
हर मिनट मिनट पर पाप चक्र, नित मन में सदा मचलता है।
बरसात स्नेह का हो कैसे, जब गुण धर्म घटायें बदली।।

मूक करुण स्वर
आओ चलें क्षितिज के पार,
              जहाॅ न होता यह संसार।
शान्ति अवनि है नभ का प्रांगण,
              शान्ति प्रकृति का नीरव नर्तन।
नीरवता का राज्य रहेगा,
              नीरव अनिल अनल पय धार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
              जहाॅ न होता यह संसार।।1।।
अनावरित हो हिय मंजूशा,
              बने चकोरी चॅद्र पियूषा,
सच्चे होयें सपने अपने,
              अमित कल्पना हो साकार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
              जहाॅ न होता यह संसार।।2।।
हम तुम होंगे दोनो एक,
              वहाॅ न होगंे विघ्न अनेक,
सुख के सारे साज सजेंगें,
              अपना रचित नया संसार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
              जहाॅ न होता यह संसार।।3।।
प्रणय मिलन की प्रबल पिपासा,
              चिर संचित उर की अभिलाशा,
क्षण में तृप्ति बनेगी सारी,
              नीति नव प्रीति रीति व्यवहार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
              जहाॅ न होता यह संसार।।4।।


भजन (भोजपुरी)
मधुरी बंसुरिया बाजी कहिया, गोपाल प्यारे।
कब तूॅ चोरइब, व्रज में दहिया, गोपाल प्यारे।
रोवेली राधा रानी, नयना से ढरे पानी।
तोहरे विरहवा कारन, खइहैं जहरवा सानी।
प्रीतिया लगाके धइलऽ रहिया, गोपाल प्यारे।। मधुरिया...........
गोपियन के गगरी फोरिके, चीरवा चोरइबऽ कबले।
गइया चरइब मोहन, रसिया रचइबऽ कबले।
ऊजरी बिरजवा अइबऽ तहिया गोपाल प्यारे।। मधुरिया............
रावण के मारे खातिर, रामजी के देहियां धइलऽ।
मनवा तूॅ पार तनी, कंस मामा बधवा कइल।
बनिके मयनवा मोहबऽ, कहिया गोपाल प्यारे।। मधुरिया..............


नारी
है कोटि नमन, है कोटि नमन , है कोटि नमन उस नारी को।
जो रत्न प्रसविनी बनकर के , जनता का भार उठाती है,
नित  अपने तन मन धन देकर, हम सबका प्राण जिलाती है,
है धरा रूप मे सदा प्रकट , है कोटि नमन उस नारी को।। 1।।
मनु सृष्टि समर्थ नही जब थे , सतरूपा का फिर साथ मिला ,
माॅ की ममता को पाकर के , जग जन्म लिया संसार खिला ,
नारी ही सत्य की रूप सदा , है कोटि नमन उस नारी को।। 2।।
कवियो की वाणी में भी तुम, रस पियूष सी बहती हो,
माॅ बनकर नर को जनने में, तुम सदा कष्ट ही सहती हो,
है भाव भवानी के जैसे , है कोटि नमन उस नारी को।।3।।
पति की सेवा में रत रहकर ,तुम माता सावित्री सीता,
जीवन का दर्शन सदा दिया , तुम ज्ञान दर्शिनी हो गीता,
जो तुलसी की प्रियरत्ना है , है कोटि नमन उस नारी को।।4।।
इन्दिरा बन अद्भुत करो कर्म , धन धरा धरित्री पर आवें ,
मन मोद मिले तेरे जन को , सब जन तुझसे ही सुख पावें ,
आदर्श नया रच दे जो ही , है कोटि नमन उस नारी को।।5।।
तुम आगे बढ़कर शासन की, अब डोर संभालो हे नारी ,
शिक्षा दीक्षा विज्ञान ज्ञान, अभिधान संभालो हे नारी ,
तुम बिना पुरूष के हो सूनी , आदर्श मिटा दो हे नारी,
तुम बिना जगत बेकार बना , आदर्श सिखा दो हे नारी,
आगे पथ नित्य निरंतर जो , है कोटि नमन उस नारी को ।
है कोटि नमन, है कोटि नमन , है कोटि नमन उस नारी को।।6।।


माॅ
माॅ तुम कितनी भोली हो, माॅ तुम कितनी भोली हो।
तुम ही मेरी पूजा अर्चन, तुम ललाट की रोली हो।।
माॅ तुम ...........
तुम्ही धरा सी धारण करके, मुझको हरदम ही है पाला,
भूख सहा है हरदम तुमने, पर मुझको है दिया नेवाला,
नही कदम जब मेरे चलते, ऊंगली पकड़ संग हो ली हो।।
माॅ तुम .............
धीरे - धीरे स्नेह से तेरे, मैने चलना थोड़ा सीखा,
पर आहट जब मिली कहीं कि, लाल हमारा थोड़ा चीखा,
दौड़ पड़ी नंगे पद हे माॅ, करूण स्वरों में तुम बोली हो।।
माॅ तुम ..............
बिना तुम्हारे सारा जीवन, लगता माते है यह रीता,
जब तक है आशीष तुम्हारा, तब तक मै हूॅ जग को जीता,
तुम तो हो ममता की मूरत, सुखद स्नेह की झोली हो।।
माॅ तुम .............
अगर तुम्हारे ऊपर अपना, सारा जीवन अर्पित कर दूॅ,
नही मिटेगा कर्ज तुम्हारा, चाहे सभी समर्पित कर दूॅ,
भले कुपुत्र हुआ मै बालक, कभी नही तुम डोली हो।।
माॅ तुम .................

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